Story of a girl my tongue in Hindi Fiction Stories by Trishala_त्रिशला books and stories PDF | एक लड़की की कहानी मेरी जुबानी

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एक लड़की की कहानी मेरी जुबानी

हम सबको कहानियां पढ़ने या सुनने का शौक तो वैसे ही बचपन से होता है। ये कहानियां हमें उस दुनिया में ले जाती है, जहां हमें सकून और अपनापन हासिल होता है। तब मैं ये बात नहीं जानती थी कि मेरी जिंदगी भी किसी कहानी की तरह मोड़ लेगी। जहां मेरी जिम्मेदारियां मुझसे मेरे बचपन और teenage छीन लेगी। मैं अपने घर की सबसे छोटी लड़की थी, वैसे तो घर के सबसे छोटे बच्चों को बहुत दुलार मिलता है और वह दुलार मुझे भी मिला पर मुझे ये नहीं पता था यह दुलार मेरे पास महज कुछ वक्त के लिए था । इतनी छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी और खुद में इतना मजबूत बनना होगा। इन सब बातों में अपना नाम बताना ही भूल गई। मैं......रुचि

मेरी लाइफ कोई फेयरी टेल्स की कहानी की तरह नहीं थी। मम्मी बताती थी कि मेरे पैदा होने के लिए बड़ी प्रार्थना की तब जाकर मैं हुई । मैं हुुई तो मम्मी - पापा बहुत खुश हुए मम्मी बताती है कि पापा ने पूरे मोहल्ले में मिठाई बांटी और ढोल बाजवाए। कितनी किस्मत वाली हो ना जो ऐसे मां-बाप मिले। घर में सबसे छोटी लङकी, मेरे से बड़े भाई जो बहुत शैतान थे..... अगर आप सोच रहे हो ऐसा बोलूंगी तो बिल्कुल गलत.... भाई तो बहुत शांत है। शैतान तो मैं थी। जब देखो भाई को परेशान करती और भाई मुझ पर कभी भी गुस्सा नहीं करते । भाई मुझसे बहुत प्यार करते, बहुत बड़े थे करीब 14 साल । जब भी स्कूल से आते तो मेरे लिए चॉकलेट लाते और सबसे पहले मुंह हाथ धोकर मुझे प्यार करते और मुझे चॉकलेट खिलाते मम्मी भाई को डांटते हुए कहती रवि तूने इसकी आदत खराब कर दी है, दांत में कीड़े लग जाएंगे, तू सुनता क्यों नहीं है और भाई मम्मी को कहते मेरी इकलौती बहन है इसे प्यार नहीं जताऊँगा तो किसे जताऊँगा। भाई की यह बात सुनकर मम्मी चुप हो जाती क्योंकि मम्मी जानती थी भाई कितना प्यार करते हैं मुझे । हम सब रात का खाना पापा के साथ खाते थे और हमें खूब मजा भी आता। पापा भाई से बीच-बीच में स्कूल में पढ़ाई कैसी चल रही है, यह भी पूछा करते और जब मेरी बात आती तो मेरा मुँह छोटा-सा हो जाता और पापा को सब समझ आ जाता है। मुझसे कहते गोलू पढ़ाई में ध्यान दो। भाई की तरह नहीं बनना तुम्हें । भाई की तरह ही तो मैं बनना चाहती हूं और मैं जोर से कहती हां, मुझे भाई की तरह ही बनना है। भाई मेरे फेवरेट है; पापा कहते सच में और मैं कहती हां, पापा और फिर पापा कहते और मैं? पापा तो मेरी जान है!! सब मेरी बातें सुनकर हंसते और मुस्कुराते ऐसे ही हंसी खुशी से दिन बीत रहे थे।
मेरा तो सारा दिन घर में ही बीता था । खिलौनों के साथ और भाई के स्कूल से आने के इंतजार में निकल जाता था । मैं प्ले स्कूल में थी तो जल्दी आ जाती थी ।घर में खूब धूम मचाती, जब थक जाती तो सो जाती । आज उन दिनों को याद करती हूँ तो आंखें भर आती हैं।
सब कुछ अच्छा ही चल रहा था कि अचानक से भाई की तबीयत खराब हो गई । मम्मी जल्दी से भाई को लेकर हॉस्पिटल गई। मुझे कुछ समझ नहीं आया मेरे लिए तो कुछ समझ ही नहीं थी की हो क्या रहा है? मैं रोई जा रही थी, मम्मी जा चुकी थी मुझे घर पर छोड़कर पास वाली आंटी को बोलकर की रूचि का खयाल रखना, रवि को लेकर हॉस्पिटल जा रही हूं। मैं तो भाई-भाई कहकर रोई ही जा रही थी। आंटी ने चॉकलेट दी फिर भी मैं चुप नहीं हुई, कहा भाई मम्मी थोड़ी देर में आ जाएंगे चुप हो जा बच्चा कब मैं रोते रोते सो गई पता ही नहीं चला।
जब आंखें खुली तो खुद को पापा की बाहों में पाया। पापा को देखते ही मैंने कहा पापा भाई - भाई और मैं रोने लगे पापा ने चुप कराया और बोले भाई और मम्मी कल आएंगे; पापा आज आप की देखभाल करेंगे चलो अच्छे बच्चे की तरह डिनर करो, डिनर करा कर मुझे सुला दिया।
अगली सुबह जब मम्मी-भाई को लेकर आए तो सब कुछ शांत ऐसा लगा कि चारो ओर न जाने कैसा सन्नाटा फैला हुआ था ।भाई को कमरे में व्हीलचेयर से लाया जा रहा था। मम्मी रो रही थी पापा भी रो रहे थे, उन्हें देख कर मुझे भी रोना आ गया। घर के बाहर बहुत भीड़ जमी थी लोग बातें कर रहे थे; कुछ लोग खुसर-फूसर कर रहे थे; इतने लोगों मैंने कभी नहीं देखे थे; लोग कह रहे थे कि इससे अच्छा होता अगर रवि मर जाता है ; बेचारे कुमार साहब कैसे करेंगे... इतना सब...? ऊपर से एक बेटी वो भी काली जिसे देख ने का मन ही नहीं करता। ना जाने कुमार परिवार ने कौन से पाप किए है जिसकी यह सजा मिले और ना ही जाने क्या क्या बातें जिनका मतलब ना मुझे तब समझ आया था और ना आज.....
मरता, काली, बेचारे ये शब्द कभी सुने ही नहीं थे मैंने। मुझे तो बस भाई को देखना था, धीरे-धीरे लोग जाने लगे और घर खाली होने लगा । मैं घर के एक कोने में खड़ी सब देख रही थी, यह सब क्या चल रहा है मुझे नहीं समझ आ रहा था। मम्मी बस रोए जा रही थी और पापा मम्मी का हौसला बढ़ा रहे थे ।भाई कमरे में भाई लेटे हुए थे, मुझे भाई को देखना था ।तो मैं चुपचाप से भाई के कमरे में घुस गई और भाई - भाई पुकारने लगे भाई. भाई.... भाई... कुछ बोलो ना मैं भाई के बेेड पर चढ गई और उनके गाल पर हाथ लगाकर बुलाया भाई मुझसे तो बोलो ना भाई, कुछ नहीं बोल रहे थे तो मैं भाई-भाई कहकर जोर-जोर से रोने लगी। मेरा रोना सुनकर मम्मी- पापा कमरे में भाग के आए और उन्हें आता देख बोलने लगी, मम्मी - पापा देखो भाई कुछ नहीं बोल रहे हैं। मम्मी - पापा ने मुझे गले से लगा लिया और कहा भाई अभी सो रहे हैं। जब उठेगा तब बात करेगा ठीक है गोलू, यह सुनकर मैं खुश हो गई, चलो अब बाहर जाओ ।नहीं मैं नहीं जाऊंगी मैं भाई के पास ही रहूंगी पता नहीं भाई कब उठेंगे और जब वो उठेगें तो उनकी गोलू उनके पास होनी चाहिए ना। मैं भाई के पास ही रहूंगी मम्मी ने बोला गोलू जिद्द नहीं करते, पापा ने मम्मी के कंधे पर हाथ रखा कर इशारा किया कि रहने दो गोलू को पर..... कोई बात नहीं! मैं भाई के पास बैठकर, उनके सर पर हाथ फैराने लगी। मम्मी-पापा दरवाजे के सामने खड़े होकर मुझे और भाई को देखने लगे। पापा - मम्मी को वहां से लेकर चले गए, पापा ने मम्मी से कहा तुम ऐसा करोगी तो ऐसा कैसे चलेगा; बोलो तुम तो मेरी हिम्मत हो, हम दोनों को एक दूसरे को हिम्मत देनी हैं और एक दूसरे की हिम्मत बनना है। हमे अपने बच्चों को इतना मजबूत बनाना है कि दुनिया का वह खुद सामना कर सके और अपने हक के लिए खड़े हो सके। आप सही कह रहे हो, मुझसे ये नहीं देखा जा रहा है ।मेरा बच्चा मेरे सामने ऐसा पड़ा है। ये क्या कह रही हो तुम? हमें उसे वो आत्मविश्वास देना है कि वह खुद के लिए खड़ा हो सके। पहले यह सोचो रवि को यह सब कैसे बताना है और इसके लिए उसे कैसे तैयार करना है......??